Full description not available
L**K
हॉरर का एक ऐसा सोपान जिसे देखते आप पूरा पढ़े बिना नही रह सकते।
किसी पात्र को गढ़ते समय जब आपको लगे कि कहानी खुद उसे अपने तरीके से चला रही है तब आप के पास करने को कुछ नही होता, आप तो उस कहानी की रौ में बहते जाते है।हॉरर कहानियां इसलिए भी चुनौती होती है क्योंकि उसमें हास्य का पुट कहानी की गरिमा को खो देता है और कहानी एक ही रस में रहती है जिसे नीरसता होने का खतरा बना रहता है।लेकिन जब कहानी 300 पेज का पूरा उपन्यास हो तो पाठक के मुंह से बरबस निकलता है कि लेखक वाकई अद्भुत है।"मधुबाला" को आधा अधूरा फेसबुक पर पढ़ने के बाद, मेरी बहुत इच्छा थी कि ये उपन्यास के रूप में आये, और कृपा शङ्कर भैया ने उसे सफलता पूर्वक निभाया भी। लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी कि एक हॉरर उपन्यास में हर क्षण एक नया रौमांच उन्होंने कैसे बनाये रखा।"मधुबाला" उपन्यास का पहला दृश्य ही खौफनाक और रहस्यमय हो जाता है, जहां बस में बैठी सवारियां एक दूसरे से पहेलियों में बात करती है। दुर्घटना के बाद का दृश्य तो और भी भयानक है जब अस्पताल में एक के बाद एक जगह आपको ऐसा लगता है कि यह तो सुनील को फंसाने के षड्यंत्र है।"नौतनवा" जितना रहस्यमयी है उतना ही दुःखद है "सुनील" का वासनामयी प्रेम जिसमे वह अपनी पत्नी को भूल कर एक अधर्म का संसार रचाने निकलता है। उसके देह से पल पल खून चूसती मधुबाला के विषय मे वह खुली आँखों से भी नही देख पा रहा था।इंस्पेक्टर सत्यजीत चौधरी और पण्डित गोपाल के चरित्र के साथ भी कृपा शङ्कर जी पूरा न्याय करते है। परंतु उनका यूएसपी दृश्यों को गढ़ने में रहा, हालांकि इस वजह से बहुत बार दोहराव की स्थिति भी बन आई पर इतने बड़े उपन्यास में यह नगण्य है। कंचन का पति के प्रति प्रेम और उसकी परवाह दिखाने में लेखक कहीं भी रति भर गुंजाइश नही छोड़ते।मधुबाला से कहानी नूरजहाँ तक आती है और आप बेबश से यह महसूस करते है कि अब तक जो पढ़ा वह तो मात्र एक छलावा है, यही पर महसूस भी होता है कि कहानी खुद को ही गढ़ रही थी।उपन्यास में पन्ने दर पन्ने कब्र, जंगल, स्कूल, हस्पताल व रात के दृश्य रौमांच के साथ भय भी पैदा करते है, उपन्यास भले ही लम्बा लगता है पर मजे की बात यह कि आप इसे पढ़ते ही रहना चाहते है। कृपा शङ्कर अपना ही एक नया संसार रचाते है जहां मर्यादाओं का टूटना, प्रेम के लिए लड़ना, धोखा, ईर्ष्या, सभी भाव समानांतर चलते है।किताब के आवरण पृष्ठ व छपाई वाकई बेहद खूबसूरत है, एक आध जगह कोई त्रुटि मिल जाये तो कहा नही जा सकता अन्यथा किताब में प्रूफ की गलतियां भी दिखाई नही देती।लेखक का मजबूत पहलू यही है कि वो मुक्त छोड़ी हुई कहानी को वापस समेट लेता है। यह कृपा शंकर मिश्र 'खलनायक' भैया का प्रथम उपन्यास था, सौभाग्य से इसके दूसरे संस्करण का अनावरण मेरे ही हाथों से गोपालगंज में हुआ था।उपन्यास:- मधुबालाजॉनर:- हॉररपेज:- 292मूल्य:- 250/-लेखक:- कृपा शङ्कर मिश्रप्रकाशन:- हर्फ पब्लिकेशन ( Jalaj Kumar Mishra )लोकेश कौशिक#जय_भूतेश्वर
P**H
हारर का अलहदा अंदाज...."मधुबाला"
मधुबाला पढ़ते समय पाठक खुद को एक अंजानी दुनिया में पाता है! दिमाग को चकरघिन्नी बनाने वाला कथानक! रहस्यों का ऐसा मकड़जाल है ये उपन्यास, जिसे आपने एक बार पढ़ना शुरु किया तो दिमाग की नसें चटकने लगेंगी! चैन तभी मिलेगा,जब पूरा पढ़ लेंगे! लेखक को बहुत बहुत बधाई 💐💐
A**H
प्रेतों की दूनिया में स्वागत है आपका!
गाँव, देहातों में लोकप्रिय कहानियों में सस्पेंस व हारर के बेहतरीन छौंक से बिल्कुल ताजातरिन, दिलकश व पठनीय" मधुबाला " तैयार हुईं है! ग्रामीण शब्दों और लोकोक्तियों के जबरदस्त प्रयोग व अंत तक आकर्षण व सस्पेंस बनाये रखने में लेखक पुर्णतः सफल हुए हैं! पुस्तक से- " दोनों के प्रेम ऐसे पनप रहा था मानो सावन- भादो की गीली लकड़ी सुलग रही हो "
O**H
बेहतरीन किताबों में से एक।
बहुत ही कम ऐसे किताब है जो इतना ज्यादा सस्पेंश और थ्रिलर पैदा करते हो, अपने कैटगरी का बेस्ट किताब
V**Y
Best horror story
बेहतरीन उपन्यास
I**H
रहस्य का संसार
"मधुबाला" कृपा शंकर मिश्र द्वारा लिखित प्रथम उपन्यास है! अपनी पहली ही रचना में मिश्र जी ने सस्पेंस/हायर का ऐसा जाल बुना है कि पाठक का मस्तिष्क उसमें बुरी तरह उलझकर रह जाता है!एक ही बैठक में पठनीय उत्कृष्ट उपन्यास!
K**.
Shandar book
इससे अच्छी हॉरर बुक नहीं पढ़ी हमने। अदभुत है। लेखक को बहुत बहुत बधाई। महादेव की कृपा बनी रहे। जय हो
S**I
रहस्यों के रोमांच से भरी हुई आज के समय की एक बेहतरीन किताब
बहुत ही सुन्दर उपन्यास!!!इस किताब की जितनी भी तारीफ की जाए, वो कम है। सस्पेंस और थ्रिलर का बेहतरीन समायोजन इस उपन्यास से पहले कम ही देखा गया है। इसकी कहानी किसी अच्छे निर्देशक द्वारा वेब सीरीज में आने लायक है।
Trustpilot
3 days ago
2 weeks ago